छंद किसे कहते हैं BY OM EDUCATION POINT

M.D.M PUBLIC SCHOOL JANI KHURD
HOME ASSIGNMENT -3
SESSION – 2020 – 2021
CLASS – 10th

SUBJECT – हिंदी 
CLASS  TEACHER - RAJ KUMAR SIR

छंद किसे कहते हैं :-

छंद शब्द ‘ चद ‘ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है – खुश करना। हिंदी साहित्य के अनुसार अक्षर , अक्षरों की संख्या , मात्रा , गणना , यति , गति से संबंधित किसी विषय पर रचना को छंद कहा जाता है। अथार्त निश्चित चरण , लय , गति , वर्ण , मात्रा , यति , तुक , गण से नियोजित पद्य रचना को छंद कहते हैं। अंग्रेजी में छंद को Meta ओर कभी -कभी Verse भी कहते हैं।

छंद के अंग :-

1. चरण और पाद
2. वर्ण और मात्रा
1. चरण या पाद :- एक छंद में चार चरण होते हैं। चरण छंद का चौथा हिस्सा होता है। चरण को पाद भी कहा जाता है। हर पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती है।

चरण के प्रकार :-

1. समचरण
2. विषमचरण

1. समचरण :- दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहते हैं।

2. विषमचरण :- पहले और तीसरे चरण को विषमचरण कहा जाता है।

3. वर्ण और मात्रा :- छंद के चरणों को वर्णों की गणना के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है। छंद में जो अक्षर प्रयोग होते हैं उन्हें वर्ण कहते हैं।

मात्रा की दृष्टि से वर्ण के प्रकार :-

1. लघु या ह्रस्व
2. गुरु या दीर्घ
1. लघु या ह्रस्व :- जिन्हें बोलने में कम समय लगता है उसे लघु या ह्रस्व वर्ण कहते हैं। इसका चिन्ह (1) होता है।

2. गुरु या दीर्घ :- जिन्हें बोलने में लघु वर्ण से ज्यादा समय लगता है उन्हें गुरु या दीर्घ वर्ण कहते हैं। इसका चिन्ह (:) होता है।

छंद के प्रकार :-

1. मात्रिक छंद
2. वर्णिक छंद
3. वर्णिक वृत छंद
4. मुक्त छंद

1. मात्रिक छंद :- मात्रा की गणना के आधार पर की गयी पद की रचना को मात्रिक छंद कहते हैं। अथार्त जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। जिनमें मात्राओं की संख्या , लघु -गुरु , यति -गति के आधार पर पद रचना की जाती है उसे मात्रिक छंद कहते हैं।

जैसे :- ” बंदऊं गुर्रू पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।
अमिअ मुरियम चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।”

मात्रिक छंद के भेद :-

1. सममात्रिक छंद
2. अर्धमात्रिक छंद
3. विषममात्रिक छंद
2. वर्णिक छंद :- जिन छंदों की रचना को वर्णों की गणना और क्रम के आधार पर किया जाता है उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं।
वृतों की तरह इनमे गुरु और लघु का कर्म निश्चित नहीं होता है बस वर्ण संख्या निश्चित होती है। ये वर्णों की गणना पर आधारित होते हैं।जिनमे वर्णों की संख्या , क्रम , गणविधान , लघु-गुरु के आधार पर रचना होती है।
जैसे :- (i) दुर्मिल सवैया।
(ii) ” प्रिय पति वह मेरा , प्राण प्यारा कहाँ है।
दुःख-जलधि निमग्ना , का सहारा कहाँ है।
अब तक जिसको मैं , देख के जी सकी हूँ।
वह ह्रदय हमारा , नेत्र तारा कहाँ है।

3. वर्णिक वृत छंद :- इसमें वर्णों की गणना होती है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु -गुरु का क्रम सुनिश्चित होता है। इसे सम छंद भी कहते हैं।

जैसे :- मत्तगयन्द सवैया।

4. मुक्त छंद :- मुक्त छंद को आधुनिक युग की देन माना जाता है। जिन छंदों में वर्णों और मात्राओं का बंधन नहीं होता उन्हें मुक्तक छंद कहते हैं अथार्त हिंदी में स्वतंत्र रूप से आजकल लिखे जाने वाले छंद मुक्त छंद होते हैं। चरणों की अनियमित , असमान , स्वछन्द गति और भाव के अनुकूल यति विधान ही मुक्त छंद की विशेषता है। इसे रबर या केंचुआ छंद भी कहते हैं। इनमे न वर्णों की और न ही मात्राओं की गिनती होती है।

जैसे :- ” वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता
पथ पर आता।
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक ,
चल रहा लकुटिया टेक ,
मुट्ठी भर दाने को भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलता
दो टूक कलेजे के कर्ता पछताता पथ पर आता।

प्रमुख मात्रिक छंद :-
1. दोहा छंद
2. सोरठा छंद
3. रोला छंद

1. दोहा छंद :- यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये सोरठा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 13-13 तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसमें चरण के अंत में लघु (1) होना जरूरी होता है।

जैसे :- (i) Sll SS Sl S SS Sl lSl
“कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
lll Sl llll lS Sll SS Sl
समय पाय तरुवर फरै, केतक सींचो नीर ।।”
(ii) श्रीगुरू चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि !
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि !!

2. सोरठा छंद :- यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये दोहा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहा का उल्टा होता है। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना जरूरी होता है।तुक प्रथम और तृतीय चरणों में होता है।

जैसे :- (i) lS l SS Sl SS ll lSl Sl
“कहै जु पावै कौन , विद्या धन उद्दम बिना।
S SS S Sl lS lSS S lS
ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए ना मिलें।”
(ii) जो सुमिरत सिधि होय, गननायक करिबर बदन।
करहु अनुग्रह सोय, बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥
3. रोला छंद :- यह एक मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11 और 13 के क्रम से 24 मात्राएँ होती हैं। इसे अंत में दो गुरु और दो लघु वर्ण होते हैं।
जैसे :- (i) SSll llSl lll ll ll Sll S
“नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बंदी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।”


(ii) यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥




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