M.D.M PUBLIC SCHOOL JANI KHURD
HOME ASSIGNMENT - 1
SESSION – 2020 – 2021
CLASS – 10th
SUBJECT – हिन्दी
CLASS TEACHER - RAJ KUMAR SIR
काव्य - सौन्दर्य के तत्व
( क ) रस
श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है। रस के जिस भाव से यह अनुभूति होती है कि वह रस है उसे स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव्य रचना के आवश्यक अव्यय हैं।
रस का शाब्दिक अर्थ है - निचोड़। काव्य में जो आनन्द आता है वह ही काव्य का रस है।
कुछ प्रमुख रस निम्नलिखित है -
हास्य रस :- किसी की आकृति वेशभूषा चेष्टा आदि को देखकर हृदय मे जो विनोद का भाव जाग्रत होता है वह ' हास्य ' कहा जाता है |
हास्य के उपकरण -
(क) स्थयी भाव - हास्य
(ख) विभाव - (1) आलम्बन विभाव - विकृति वेशभूषा , आकर , चेष्टाएँ आदि | (2) उद्दीपन विभाव - आलम्बन की अनोखी आकृति , बातचीत तथा चेष्टाएँ आदि |
(ग) अनुभव - आश्रय की मुस्कान , नेत्रों का मिचमिचाना , अट्हास आदि | (घ) संचारी भाव - हर्ष , आलस्य , निद्रा , चपलता , कम्पन्न , उत्सुकता , आदि |
उदाहरण -
(क) स्थायी भाव - हास
(ख) विभाव - (1) आलम्बन - विन्ध्य के उदास वासी ; आश्रय - पाठक | (2) उद्दीपन - गौतम की स्त्री का उद्दार |
(ग) अनुभव - मुनियों की कथा आदि सुनना |
(घ) संचारी भाव - हर्ष , उत्सुकता ,चंचलता आदि |
हास्य रस के कुछ उदाहरण -
विन्ध्य के बासी उदासी तपोव्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे |
गोतमतीयतरी , तुलसी , सो कथा सुनि भी मुनिवृंद सुखारे ||
ह्वै है सिला सब चद्रमुखी परसे पद - मंजुल - कंज तिहारे |
किन्ही भली रघुनायकजु करुना करि कानन को पगु धारे ||स्पष्टीकरण :-
(क) स्थायी भाव - हास
(ख) विभाव - (1) आलम्बन - विन्ध्य के उदास वासी ; आश्रय - पाठक | (2) उद्दीपन - गौतम की स्त्री का उद्दार |
(ग) अनुभव - मुनियों की कथा आदि सुनना |
(घ) संचारी भाव - हर्ष , उत्सुकता ,चंचलता आदि |
हास्य रस के कुछ उदाहरण -
हँसी-हँसी भाजैं देखि दूलह दिगम्बर को ,
पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह मे |
व
सीस पर गंगा हँसै , भुजनि भुजंगा हँसै ,
हास ही को दंगा भयो , नंगा के विवाह मे |
करुण रस
किसी भी प्रियवस्तु , व्यक्ति आदि के अनिष्ट की आशंका अथवा इनके विनाश से उत्पन्न क्षोभ अथवा दुःख की संवेगात्मक स्थिति को करुण रस कहा जाता है |
विभव , अनुभव और संचारी भाव के संयोग से पूर्णता प्राप्त होने पर 'शोक' नामक स्थायी भाव से करुण रस की निष्पत्ति होती है |
उपकरण -
(क) स्थायी भाव - शोक
(ख) विभाव - (1) आलम्बन - विनष्ट वियक्ति अथवा वस्तु |
(2) उद्दीपन - आलम्बन का दाहकर्म , ईष्ट के गुण तथा उससे सम्बंधित वस्तुएँ , इष्ट के चित्र का दरसन आदि |
(ग) अनुभाव - भूमि पर गिरना , नि श्वसन , छात्ती पीटना , रोदना प्रलाप , मूर्छा , देव - निंद्रा , कम्प आदि |
(घ) संचारी भाव - निर्वेद , मोह , अपस्मार , व्याधि , ग्लानि , स्मृति , श्रम विषाद , जड़ता ,दैन्य , उन्माद , आदि |
अभी तो मुकुट बंधा था माथ ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ |
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन - शून्य कपोल |
हाय रुक गया यही संसार ,
बना सिंदूर अनल अंगार |
वातहत लतिका यह सकुमार |
पड़ी है छिन्नाधार |
विभव , अनुभव और संचारी भाव के संयोग से पूर्णता प्राप्त होने पर 'शोक' नामक स्थायी भाव से करुण रस की निष्पत्ति होती है |
उपकरण -
(क) स्थायी भाव - शोक
(ख) विभाव - (1) आलम्बन - विनष्ट वियक्ति अथवा वस्तु |
(2) उद्दीपन - आलम्बन का दाहकर्म , ईष्ट के गुण तथा उससे सम्बंधित वस्तुएँ , इष्ट के चित्र का दरसन आदि |
(ग) अनुभाव - भूमि पर गिरना , नि श्वसन , छात्ती पीटना , रोदना प्रलाप , मूर्छा , देव - निंद्रा , कम्प आदि |
(घ) संचारी भाव - निर्वेद , मोह , अपस्मार , व्याधि , ग्लानि , स्मृति , श्रम विषाद , जड़ता ,दैन्य , उन्माद , आदि |
अभी तो मुकुट बंधा था माथ ,
हुए कल ही हल्दी के हाथ |
खुले भी न थे लाज के बोल,
खिले थे चुम्बन - शून्य कपोल |
हाय रुक गया यही संसार ,
बना सिंदूर अनल अंगार |
वातहत लतिका यह सकुमार |
पड़ी है छिन्नाधार |
स्पष्टीकरण :-
(क) स्थायी भाव - शोक
(ख) विभाव - (1) आलम्बन - विनिष्ट व्यक्ति पति |
(2) उद्दीपन - मुकुट का बांधना , हाथ होना , लाज के बोल न खुलना |
(ग) अनुभव - वायु से आहत , लतिका के समान , नायिका का बेसहारा पड़े होना |
(घ) संचारी भाव - स्मृति , विषाद , जड़ता ,दैन्य , आदि |
Q 1. निम्नलिखित पंक्तियों मे कौन सा रस है ?
(1)- मतहिं पितहिं उरिन भये नीके।
गुरु ऋण रहा सोच बड़ जी के।।
(2) नाना वाहन नाना वेषा।
बिहसे सिव समाज निज देखा।।
कोउ मुख-हीन बिपुल मुख काहू।
बिन पद-कर कोउ बहु पद-बाहु।।
(3) मणि खोये भुजंग-सी जननी,
फन-सा पटक रही थी शीश,
अन्धी आज बनाकर मुझको,
क्या न्याय किया तुमने जगदीश ?
फन-सा पटक रही थी शीश,
अन्धी आज बनाकर मुझको,
क्या न्याय किया तुमने जगदीश ?
(4) सीता गई तुम भी चले मै भी न जिऊंगा यहाँ
सुग्रीव बोले साथ में सब (जायेंगे) जाएँगे वानर वहाँ।
राघौ गीध गोद करि लीन्हों।
नयन सरोज सनेह सलिल
सुचि मनहुँ अरघ जल दीन्हों। ।
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